गुरुवार, 13 फ़रवरी 2014

भाग्य

शाख से गिरते, उल्टे पुल्टे सूखे भूरे पत्ते सा
उपहारों से छील उतारे, मैले कुचले गत्ते सा
मैं अपमानित सा, 
बाहर भीतर रोता हूँ 
दुख बोता हूँ. 

घुप्प अँधेरे कमरें में टक्कर खाते भुनगे सा
लहरों से लडते भिड़ते, मरियल नाजुक तुनके सा
मैं आतंकित सा
खुली आँख सोता हूँ
चुप तोता हूँ. 

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

निरीह

रोज की तरह, नाश्ते की टेबल पर बैठकर टी० वी० खोला,
हांफता हुआ रिपोर्टर बोला..
"जम्मू में आर्मी कैम्प पर आतंकी हमला"

हह, रोज की बात, उनकी ड्यूटी है झेलें....
"क्यूं जी,  बर्तन बहुत हो जाते हैं,
एक नया डिशवाशर ना ले लें "

जब तक खा पीकर उठा,
तीन चार जवान मर लिए..
गाडी में बैठे हम,
और ऑफिस की तरफ चल दिए.

रास्ते में बड़ी बड़ी जगमगाती लाइटों वाले मॉल थे
खाए पिए घरों के इंटेलेक्चुअल लोग और उनके लाल गाल थे..
कोई हंस रहा था कोई खेल रहा था..
रोज की तरह हर कोई अपनी अपनी गाडी ठेल रहा था ..
हम भी ऑफिस में आकर फाइलों में खो गए..
उधर जाने कितने माँ के लाल खेत हुए सो गए..

वैसे भी क्या फर्क पड़ता है, हम ए० सी० में बैठे हैं..
सेफ है, ऐठें हैं..
इतना बड़ा देश है, दो चार मर गए तो भी चलता है..
10-15 हजार तनख्वाह पाने वाली छातियों के ढेर ही तो होंगे,
सब ठीक है, जब तक हमारा पेट पलता है

क्या हुआ गर किसी छोटी सी गुडिया को गोद में झुलाने वाला बाप गया..
मेरी बेटी तो कान्वेंट में पढ़ती है
क्या हुआ गर किसी की मांग का सिन्दूर पुंछ गया
मेरी बीवी तो बनारसी में जंचती है..
कहीं कोई माँ रोये तो क्या,
कहीं कोई बूढा सर पटके तो क्या,
अपना अपना उल्लू गांठों सबसे अच्छा है..
"तू आवेशित क्यों होता है, अभी तू बच्चा है.."

वैसे भी मामूली सी घटना है कोई वार (WAR) नहीं..
पांच ही तो मरे हैं, पचास हजार नहीं..
**********

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

बर्बाद

देख शहादत, तेरी रोया;
सारी रात, नहीं मैं सोया ..
जाने, किस गफ़लत में खोया..
देश तेरा बर्बाद हुआ...

सीना चौड़ा, लहू डुबोया ...
गोली निकली, बदन पिरोया...
क्या काटा और, क्या था बोया.
देश तेेरा बर्बाद हुआ

खून पसीने, बदन भिगोया
घर का कूड़ा कचरा धोया
जिसकी खातिर, सब कुछ ढोया
देश तेरा बर्बाद हुआ...

शहीद इन्स्पेक्टर श्री मोहन चंद शर्मा को समर्पित...
25/07/2013.

रविवार, 14 जुलाई 2013

गाजर घास

झेलता आया हूँ कमबख्त,  पचास साल से...
नामुराद बची है तू,  अभी भी काल से?

उग जाती है तू जहाँ देखो,  बगैर ताल से
लुट गया मेरा बाल बाल तक,  तेरी देखभाल से

सोचा था बस तुझे, उखाड़ मारूँगा
पर हो गया बेजार, गलीज तेरी चाल से ..

काम और काज के सब्जबाग में फंसा
तडप तडप कर रह गया,  फटे ही हाल से.. .

देकर कटोरा हाथ में,  खुश हुई है तू?
रूक, ना बचेगी तू भी अब, इस भूचाल से...

सुन, और अब मैं झांसे में, तेरे आउंगा नहीं..
खिला दे दाने भले,  तू कितने अपनी डाल से..

तोड फेंक दूंगा तुझे, जड समेत हाँ..
उगेंगे अब गुलाब यहां,  तेरी खाल से.. .

बुधवार, 7 मार्च 2012

होली है

होली है? ....
जब हो ही ली है, तो फिर कैसी होली है?
रंग कई है चटख चमकते, 
जाने क्यों सब काले दिखते?
ठंडे पानी, खूब नहाया, 
फिर भी गहरे सो ली है.. 
होली है?.....
ऊँची आवाजों में, झूमें, 
नाचें, गायें..
बाहर भीतर शोर भरा, 
अंदर फैली नीरवता.. 
मौज मनाती, मतवाली ये,
कैसी टोली है..
होली है?.....
मीठा खट्टा भोग लगाकर, 
जीभ स्वाद से भरी हुई, 
गहरे गहरे कड़ुआहट है, 
कैसी ये हमजोली है?
होली है?....

बुधवार, 21 दिसंबर 2011

फलसफ़ा ....

"जबसे आया हूँ जमीं पर, कसमसाहट है ...
कभी कुछ यहाँ होता है, कभी कुछ वहाँ होता है..
बोलता हूँ जब कुछ बोलना नहीं,
 जब चिल्लाना हुआ, तब मौन हूँ...
दुःख मिले, छोटे बड़े, रोता भी रहा,
किसी से बांटा, तो किसी से सहा
 रोते हुए भूल गया इस बात को,
 हजारों करोड़ों की भीड़ है, मैं तो बस गौण हूँ...
किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ चाहा, 
सबके लिए, मैं खुद को ढालता गया..
पता पूछते पूछते, कट गयी उमर
 रहता कहाँ हूँ, मैं कौन हूँ....
रहता कहाँ हूँ, मैं कौन हूँ...."

गुरुवार, 1 दिसंबर 2011

करारा

कानों में झनझनाहट है,
उफ़ ये कैसी आहट है,
कहीं मेरे पुराने पाप तो नहीं?
पिद्दी से यें, मेरे बाप तो नहीं?
पता नहीं किधर जा रहे हैं?
साले हमसे टकरा रहे हैं
पंडित जी, राहू पर केतु तो नहीं चढ गया,
गुलाम घोडा, आज कैसे अड गया?
लग रहा है, दिन पूरे हो गए हैं,
बाबा लोग जाने कैसे बीज बो गए हैं?
मैंने तो बोरिया बिस्तर लपेट लिया है,
तुम भी समेट लो,
कल को मत कहना,
 शुक्र शनि सब साजिश कर रहे हैं,
और हम यहाँ बैठे कानों की मालिश कर रहे हैं......

लोकशाही

खेद है, 
रुकावट के लिए खेद है,
चूसने की प्रक्रिया में रुकावट के लिए खेद है...


पर तुम्हारे सन्नाटे में क्या भेद है .....
......
भागो, तुम आम हो हम नहीं डरते...
हमारा दुर्ग अभेद्य है...

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

माफ कर देना..

दोस्तों मुझे माफ कर देना,
मैं साधारण इंसान था, दूर तक नहीं देख सकता था,
इसलिए जितनी दूर तक मेरा दिमाग जा सका मैंने बस उतना सोचा,
और बिना किसी कारण के सबके दिलों को खरोंचा,
सब कुछ अचानक हो गया, जीवन सीधे चलते चलते किसी जंगल में खो गया,
जंगल में अनजाने भय के शेर और चीतों ने मुझे दबोच लिया,
मैं अंधा,..... गुलाब को काँटा सोच लिया......
गुलाब को मेरी बेहयाई से पीड़ा पहुंची होगी....
ए दोस्तों गुलाब को बता देना,
मैं फूटी किस्मत वाला था,
उसको खुशबू और कोमलता का कद्रदान मिल जायेगा,
उसको समझा लेना,
ईश्वर के कोप का अधिकारी मै,
मुश्किल है मेरी पतवार खेना,
ऐ दोस्तों मुझे माफ कर देना....

सोमवार, 2 अगस्त 2010

अनजाना डर

छिन्न भिन्न हो बंट जाऊंगा
मुझे पता था ? मर जाऊंगा?
मेरी इसमें गलती क्या है,
सपने तुमने देखे थे.
-------------------------------
सावन की हरियाली होगी
आँगन में फुलवारी होगी
बच्चों की किलकारी होगी
अच्छा होता ऐसा होता
-------------------------------
फुलवारी में कांटें होंगे
मुझे पता था? छिल जाऊंगा?
मेरी इसमें गलती क्या है,
सपने तुमने देखे थे.
*********************
लोक लाज का पालन होगा
गृहस्थी का संचालन होगा
पित्र ऋण का तारण होगा
अच्छा होता ऐसा होता
-------------------------------
गृहस्थी में हंगामा होगा
मुझे पता था? हिल जाऊंगा?
मेरी इसमें गलती क्या है,
सपने तुमने देखे थे.
*********************
जीवन में सपनें होंगे
वो सारे अपने होंगे
उनमें मन रमने होंगे
अच्छा होता ऐसा होता
-------------------------------
सपनों में इतिहास दिखेगा,
मुझे पता था? डर जाऊंगा?
मेरी इसमें गलती क्या है,
सपने तुमने देखे थे.
*********************