बुधवार, 21 दिसंबर 2011

फलसफ़ा ....

"जबसे आया हूँ जमीं पर, कसमसाहट है ...
कभी कुछ यहाँ होता है, कभी कुछ वहाँ होता है..
बोलता हूँ जब कुछ बोलना नहीं,
 जब चिल्लाना हुआ, तब मौन हूँ...
दुःख मिले, छोटे बड़े, रोता भी रहा,
किसी से बांटा, तो किसी से सहा
 रोते हुए भूल गया इस बात को,
 हजारों करोड़ों की भीड़ है, मैं तो बस गौण हूँ...
किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ चाहा, 
सबके लिए, मैं खुद को ढालता गया..
पता पूछते पूछते, कट गयी उमर
 रहता कहाँ हूँ, मैं कौन हूँ....
रहता कहाँ हूँ, मैं कौन हूँ...."

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