गुरुवार, 25 जुलाई 2013

बर्बाद

देख शहादत, तेरी रोया;
सारी रात, नहीं मैं सोया ..
जाने, किस गफ़लत में खोया..
देश तेरा बर्बाद हुआ...

सीना चौड़ा, लहू डुबोया ...
गोली निकली, बदन पिरोया...
क्या काटा और, क्या था बोया.
देश तेेरा बर्बाद हुआ

खून पसीने, बदन भिगोया
घर का कूड़ा कचरा धोया
जिसकी खातिर, सब कुछ ढोया
देश तेरा बर्बाद हुआ...

शहीद इन्स्पेक्टर श्री मोहन चंद शर्मा को समर्पित...
25/07/2013.

रविवार, 14 जुलाई 2013

गाजर घास

झेलता आया हूँ कमबख्त,  पचास साल से...
नामुराद बची है तू,  अभी भी काल से?

उग जाती है तू जहाँ देखो,  बगैर ताल से
लुट गया मेरा बाल बाल तक,  तेरी देखभाल से

सोचा था बस तुझे, उखाड़ मारूँगा
पर हो गया बेजार, गलीज तेरी चाल से ..

काम और काज के सब्जबाग में फंसा
तडप तडप कर रह गया,  फटे ही हाल से.. .

देकर कटोरा हाथ में,  खुश हुई है तू?
रूक, ना बचेगी तू भी अब, इस भूचाल से...

सुन, और अब मैं झांसे में, तेरे आउंगा नहीं..
खिला दे दाने भले,  तू कितने अपनी डाल से..

तोड फेंक दूंगा तुझे, जड समेत हाँ..
उगेंगे अब गुलाब यहां,  तेरी खाल से.. .