तुम्हारी हँसी में खुशियों और प्यार का
सागर सा फैला है ।
क्या ये उच्छ्न्ख्रलता है ?
नहीं ।
दोष तुम्हारा नहीं है
दरअसल मन तो मेरा ही मैला है । ।
तुम थोड़ा खुल जाती हो तो
तुम्हे आवारा समझ लेता हूँ ,
अपनी पसंद के कपड़े पहन लेती हो तो
अश्लील कह देता हूँ ।
निःसंकोच बात करना , तुम्हारा सबसे बड़ा ,
गुनाह हो जाता है ,
बस में, ट्रेन में , या कहीं भीड़ में तुम्हे छेड़ना ,
आसान हो जाता है ।
जब दिल करता है, तुम्हे तोड़ देता हूँ ,
किसी भी सुनसान गली में रोक लेता हूँ ।
तुम्हे, बेइज्जत कर , रंजिश निकाला करता हूँ ,
मन में तुम्हारे लिए , गन्दगी पाला करता हूँ ।
हाँ मैं कमजोर हूँ, तभी तुम्हे , बांधकर रखना चाहता हूँ,
तुम पर अपनी निरंकुश सत्ता साधकर रखना चाहता हूँ ।
आश्चर्य है बहुत, कैसे तुमने चुपचाप ,
मुझको झेला है ।
क्या ये तुम्हारी आदत है ?
नहीं ।
दोष तुम्हारा नहीं हैं ।
दरअसल मैंने ही ये दोहरा खेल खेला है ।
मैंने ही ये दोहरा खेल खेला है......
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