शाख से गिरते, उल्टे पुल्टे सूखे भूरे पत्ते सा
उपहारों से छील उतारे, मैले कुचले गत्ते सा
मैं अपमानित सा,
बाहर भीतर रोता हूँ
दुख बोता हूँ.
घुप्प अँधेरे कमरें में टक्कर खाते भुनगे सा
लहरों से लडते भिड़ते, मरियल नाजुक तुनके सा
मैं आतंकित सा
खुली आँख सोता हूँ
चुप तोता हूँ.
उपहारों से छील उतारे, मैले कुचले गत्ते सा
मैं अपमानित सा,
बाहर भीतर रोता हूँ
दुख बोता हूँ.
घुप्प अँधेरे कमरें में टक्कर खाते भुनगे सा
लहरों से लडते भिड़ते, मरियल नाजुक तुनके सा
मैं आतंकित सा
खुली आँख सोता हूँ
चुप तोता हूँ.
Dushyantji...
जवाब देंहटाएंवाकई अच्छा लिखते हो....
Wah.. kya baat hai... new talent..
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