चले गए अंग्रेज, और देश हुआ आज़ाद,
तुम कहते थे, मिल जायेगा, हम सबको स्वराज...
तुमने हमसे, किया था वादा, सबको खाना देंगे,
सारी दुनिया से लड़कर भी, अपना हक ले लेंगे..
कोई न ऊँचा कोई न नीचा, कोई भेद न होगा,
प्रगति के फलफूल का वितरण, एक एक को होगा...
बीत गए साल दर साल, हम आज भी वहीँ खड़े हैं,
बोलो तुम ही खेवनहार!, हम क्यूँ अब भी पिछड़े हैं..
बोलो क्यूँ , आज भी बुन्दू, सर पर मैला ढोता है,
बोलो क्यूँ, आज भी हरिया, फुटपाथ पे सोता है...
क्यूँ छोटू, चाय के कप में, हरदम खटता रहता है,
क्यूँ आज भी , देश का गेंहूँ, गोदामों में सड़ता है....
क्यूँ १०० में से ८० हिस्सा, बीच में ही खो जाता है,
क्यूँ १०० में से ८० हिस्सा, बीच में ही खो जाता है,
कैसे पाँच साल में , जनसेवक, करोड़पति हो जाता है..
खिलाफत में उठने वाली, क्यूँ आवाज, दबा दी जाती है,
खाली पेट , सड़क पर लेट, ये कैसी आज़ादी है..???
छोटे छोटे देश कूद कर , आज कहाँ से कहाँ गए....
हम क्यूँ वहीँ धंसे रह गए , कुछ बोलो खेवनहार....
सावधान ओ देश के नेता! जनता मांग रही जवाब...
कैसे खर्च करदी आजादी...
कैसे खर्च करदी आजादी...
अब इसका करो हिसाब ...
अब इसका करो हिसाब....
अब इसका करो हिसाब....
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