बुधवार, 16 सितंबर 2009

छोटा भ्रष्टाचार....

So, here I am, presenting a just made poem, on my just joined department. May not be very good, but may have some subtle meaning, which I want to get commented upon. Pardon me for any misdeeds and bless me if the message has reached the hearts:------
रिफंडों में खा खा के पैसा , मोटे हो गए...
तेल से जलते थे जो दिए, आज घी के लोटे हो गए........
कहीं वकील है, तो कहीं सीए है...
गजब का नशा है, बिना पिए है....
पता नहीं पैसे, किसके हैं...
जो छीन लेता है, शायद उसके हैं....
जिसने मांगे हैं, और जो देता है....
पता नहीं कौन, किसको सेता है...
रेत में बनी ईमारत में, रहने वाली जनता....
या बिना चारकोल बनी सड़क पर, चलती जनता...
इस बंदरबांट से अनजान , गुमसुम सी, सोती है...
उधर बाबू और ठेकेदार में, आँख मिचौली, होती है...
कहा नहीं जा सकता, शोषक कौन है, और शोषित कौन है,
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बहरहाल , प्रतिक्रियाएं गौण हैं, और मेरा महान भारत मौन है....

2 टिप्‍पणियां:

  1. हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

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